Thursday, June 5, 2008

आँखें

आँखें , जो सब कहती हैं!
आँखें , जो सब सहती है !!
आँखें , जो अपनाती हैं; अपना बनाती हैं!
आँखें , जो हँसाती हैं, यही रुलाती हैं!!
ये सच क्या है, और झूट बताती हैं !
इन्हीं मैं दुःख दिखते हैं, यही खुशियाँ बहाती हैं!!
इन आँखों पे और क्या कहोगे 'फैज़'
जिनमे दुनिया समाती है!!
- फैज़ रिज़वी