... मैं तो बेहोश था,
उसकी मुहब्बत में मदहोश था
न होश था दुनिया का, ज़माने का
सिर्फ इल्तिजा थी, कोशिश थी, फिर जुनून
और जुनून तो सिर्फ उसको मनाने का
मदहोशी थी, थी आँखें खुली ज़रूर
पर उनमें न कोई तस्वीर, न साया था
बेहोशी का आलम था, था बहाना
बहाना तो सिर्फ इस बात का
कि दुनिया को मुझे इस नाम से बुलाना था
ये खेल था, हाँ ये खेल था, क़ुदरत का
की, "फैज़" तुझे इस नाम से नवाज़ा जाना था
Thursday, July 15, 2010
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